Supreme Court News: भारत में अनुकंपा के आधार पर होने वाली नियुक्तियां (compensation ground appointment), हमेशा गंभीर चर्चा का विषय रही हैं. कुछ लोग इस मामले को मानवीय दृष्टिकोण से देखने और लेने की बात करते हैं. बीते दो दशकों की बात करें तो देश में अनुकंपा के आधार पर होने वाली नियुक्तियों की संख्या में पहले की तुलना में कुछ कमी आई है. हालांकि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति लेना पहले भी आसान नहीं था. किसी परिवार के मुखिया की असमय मृत्यु होने पर उसके परिवार को आर्थिक और अन्य संकटों से बचाने के लिए अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति दी जाती थी. जिसके तहत ये फौरी तौर पर मान लिया गया था अगर किसी सरकारी नौकरी वाले शख्स की मृत्यु होती है तो उसके परिजन को नौकरी पक्का मिल ही जाएगी. लोग इसे अनुकंपा के बजाए निजी अधिकार जैसा मानने लगे थे. अगर कोई अब भी ऐसा ही सोचता है कि अनुकंपा की नियुक्तियां जरूर की जाएंगी तो वह गलत है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में अनुकंपा नियुक्तियों पर स्थिति साफ कर दी है.
याचिका खारिज क्योंकि...
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक व्यक्ति की याचिका खारिज करते हुए कहा कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति सरकारी नौकरी पाने का कोई निहित अधिकार नहीं है, क्योंकि यह सेवा के दौरान मरने वाले कर्मचारी की सेवा की शर्त नहीं है. सर्वोच्च अदालत ने उस व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी, जिसके पुलिस कांस्टेबल पिता की 1997 में ड्यूटी के दौरान मृत्यु हो गई थी, जब याचिकाकर्ता की आयु सात वर्ष थी. जस्टिस अभय एस. ओका, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि राज्य को किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के पक्ष में संबंधित नीति के विपरीत कोई अवैधता जारी रखने के लिए कहने वाला कोई निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है.
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बेंच के लिए फैसला लिखते हुए जस्टिस मसीह ने कहा कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्तियां परिवार के सदस्य की मृत्यु के समय उत्पन्न तात्कालिक वित्तीय संकट को दूर करने के लिए की जाती हैं तथा यह कोई निहित अधिकार नहीं है, जिसका दावा लंबी अवधि बीत जाने के बाद किया जा सके. फैसले में कहा गया, 'जहां तक अनुकंपा नियुक्ति को नियुक्ति के लिए निहित अधिकार के रूप में दावा करने का सवाल है, तो यह कहना पर्याप्त है कि उक्त अधिकार सेवा के दौरान मरने वाले कर्मचारी की सेवा की शर्त नहीं है, जिसे किसी भी प्रकार की जांच या चयन प्रक्रिया के बिना आश्रित को दिया जाना चाहिए.'
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याचिकाकर्ता टिंकू के पिता कांस्टेबल जय प्रकाश की 1997 में ड्यूटी के दौरान एक अधिकारी के साथ मृत्यु हो गई थी. उस समय टिंकू केवल सात वर्ष का था और उसकी मां, जो अशिक्षित थी, अपने लिए अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए आवेदन नहीं कर सकती थी. (इनपुट: न्यूज एजेंसी भाषा)
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